प्रोफ़ाइल
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी)
अंतरिक्ष विभाग (DOS), भारत सरकार के तहत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का प्रमुख
केंद्र है।
महान दूरदर्शी और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ
विक्रम ए साराभाई की स्मृति में केंद्र का नाम रखा गया है।
वीएसएससी इसरो के रॉकेट अनुसंधान और प्रक्षेपण वाहन
परियोजनाओं में अग्रणी है।
केंद्र संबद्ध क्षेत्रों जैसे प्रणोदक, ठोस प्रणोदन
प्रौद्योगिकी, वायुगतिकी, हवाई संरचनात्मक और वायु तापीय क्षेत्र, एवियोनिक्स, पॉलिमर और
कंपोजिट, मार्गदर्शन, नियंत्रण और सिमुलेशन, कंप्यूटर और सूचना, मैकेनिकल इंजीनियरिंग,
एयरोस्पेस तंत्र, वाहन में अनुसंधान और विकास गतिविधियों को भी आगे बढ़ाता है। एकीकरण और
परीक्षण, अंतरिक्ष आयुध, रसायन और सामग्री।
सिस्टम की विश्वसनीयता और इंजीनियरिंग और संचालन के सभी
पहलुओं की गुणवत्ता आश्वासन का अध्ययन और मूल्यांकन प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक पूर्णता के
स्तर तक किया जाता है।
कार्यक्रम की योजना और मूल्यांकन, प्रौद्योगिकी
हस्तांतरण और औद्योगिक समन्वय, स्वदेशीकरण, मानव संसाधन विकास, सुरक्षा और कर्मियों और
सामान्य प्रशासन समूह केंद्र की सभी गतिविधियों के लिए समर्थन करते हैं।
वीएसएससी में अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला (एसपीएल)
वायुमंडलीय विज्ञान और अन्य संबंधित अंतरिक्ष विज्ञान गतिविधियों में अनुसंधान और अध्ययन
करती है।
केरल के अलुवा में अमोनियम परक्लोरेट प्रायोगिक संयंत्र
(एपीईपी) और केरल के तिरुवनंतपुरम में इसरो जड़त्वीय प्रणाली इकाई (आईआईएसयू) भी वीएसएससी
का हिस्सा हैं।
वीएसएससी में चल रहे कार्यक्रमों में पोलर सैटेलाइट
लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी), जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी), रोहिणी साउंडिंग
रॉकेट्स और नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्चर जीएसएलवी एमके III (जिसे एलवीएम 3 भी कहा जाता है) जैसी
लॉन्च व्हीकल परियोजनाएं शामिल हैं जो सभी परिचालन चरण में हैं।
पुन: प्रयोज्य लॉन्च व्हीकल (आरएलवी) परियोजना एक
स्वायत्त लैंडिंग प्रयोग के लिए तैयार है और एक पंख वाले बॉडी री-एंट्री वाहन के साथ कक्षीय
पुन: प्रवेश प्रयोग के लिए डिज़ाइन पुनरावृत्तियों पर काम चल रहा है।
वायु श्वास प्रणोदन परियोजना निरंतर त्वरण के साथ एक
हाइपरसोनिक उड़ान की तैयारी कर रही है।
इसके अलावा, गगनयान के हिस्से के रूप में, ह्यूमन रेटेड
लॉन्च व्हीकल (HRLV) सहित ह्यूमन स्पेसफ्लाइट के लिए प्रौद्योगिकी तत्वों को विकसित किया जा
रहा है।
क्रू मॉड्यूल संरचना और मंदी प्रणाली।
गगनयान के क्रू एस्केप सिस्टम जैसी उन्नत डिजाइन
अवधारणाओं के परीक्षण के लिए एक परीक्षण वाहन भी विकसित किया जा रहा है।
छोटे उपग्रहों के लिए कम लागत वाले लांचर की वैश्विक
मांग को स्वीकार करते हुए, केंद्र एक छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) के विकास में
तेजी ला रहा है।
वीएसएससी रॉकेटरी और सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल डिजाइन और
विकास में अपनी कमान बनाए रखने का प्रयास करता है।
केंद्र एक छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) के
विकास में तेजी ला रहा है।
वीएसएससी रॉकेटरी और सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल डिजाइन और
विकास में अपनी कमान बनाए रखने का प्रयास करता है।
केंद्र एक छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) के
विकास में तेजी ला रहा है।
वीएसएससी रॉकेटरी और सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल डिजाइन और
विकास में अपनी कमान बनाए रखने का प्रयास करता है।
उत्पत्ति
वीएसएससी ने वर्ष 1962 में भारत के दक्षिण पश्चिमी तट पर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के एक तटीय गांव तुंबा में एक छोटी-सी शुरुआत की थी। 1960 के दशक की शुरुआत में, संयुक्त राष्ट्र की अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (इनकोस्पार) का भारतीय समकक्ष अंतरिक्ष अनुसंधान पर भारतीय राष्ट्रीय समिति (आइएनसीओएसपीएआर) का गठन डॉ विक्रम ए साराभाई के नेतृत्व में किया गया था। इनकोस्पार ने भूमध्यरेखीय इलेक्ट्रोजेट की परिघटना पर अध्ययन का मार्ग प्रशस्त किया है, जो चुंबकीय भूमध्यरेखा के ऊपर पश्चिम से पूर्व की ओर जाने वाले इलेक्ट्रॉनों का एक संकीर्ण बेल्ट है। जिस ऊंचाई पर यह धारा प्रवाहित होती है, वह यंत्रीकृत गुब्बारों की पहुंच से बाहर है और उपग्रहों के लिए बहुत निम्न है। इस परिघटना के अध्ययन करने का सबसे अच्छा तरीका यथास्थान माप करने के लिए इस क्षेत्र में यंत्रीकृत रॉकेटों (परिज्ञापी रॉकेट) का प्रमोचन करना है। भू-चुंबकीय भूमध्यरेखा से निकटता के कारण तुंबा एक अनुपम विकल्प था। इस उद्देश्य के लिए संयुक्त राष्ट्र की प्रायोजकता के अधीन वर्ष 1962 में तुंबा भूमध्यरेखीय रॉकेट प्रमोचन स्टेशन (टर्ल्स) की स्थापना की गई थी। शुरुआत में, स्थानीय निवासियों द्वारा विज्ञान की वेदी पर समर्पित प्राचीन सेंट मैरी मैग्दलीन गिरिजाघर ने कार्यालय और प्रयोगशालाओं के रूप में कार्य किया। उस गिरिजाघर का हिस्सा बनने वाले 'बिशप हाउस' को कभी निदेशक, टर्ल्स के कार्यालय के रूप में उपयोग किया जाता था। बाद में उस गिरिजाघर को एक अंतरिक्ष संग्रहालय के रूप में बदल दिया गया, जो अब छात्रों और जनता सहित नियमित भीड़ को आकर्षित करता है। 21 नवंबर, 1963 को भारत में अंतरिक्ष अन्वेषण की शुरुआत को अंकित करते हुए, टर्ल्स से दो चरणों वाला परिज्ञापी रॉकेट, 'नाइक-अपाचे' का प्रमोचन किया गया था। चुंबकीय भूमध्यरेखा से थोड़ी दूर स्थित इस अनुपम सुविधा के विशेष मूल्य को पहचानते हुए, तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री, इंदिरा गांधी ने 02 फरवरी, 1968 को टर्ल्स को संयुक्त राष्ट्र को समर्पित किया। उसके साथ, भारत में वायविकी तथा वायुमंडलीय विज्ञानों के अनुसंधान क्षेत्र में बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ। यथासमय, अमरीका, यूएसएसआर, जापान, फ्रांस और जर्मनी ने टर्ल्स से परिज्ञापी रॉकेटों का प्रमोचन शुरू कर दिया। जबकि प्रारंभिक परिज्ञापी रॉकेट आयात किए हुए थे, भारत ने आगे जाकर रोहिणी परिज्ञापी रॉकेट कार्यक्रम (आरएसआर) के तहत परिज्ञापी रॉकेटों के निर्माण और प्रमोचन में स्वदेशी क्षमता स्थापित की। आरएसआर कार्यक्रम से आत्मविश्वास प्राप्त करते हुए, वेली पहाड़ियों पर वर्ष 1965 में स्थापित किए गए अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी कक्ष (एसएसटीसी) ने प्रमोचन यानों के लिए प्रणालियों और घटकों के विकास पर अनुसंधान शुरू किया। ठोस नोदक ब्लॉकों के उत्पादन के लिए वर्ष 1969 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) के रासायनिक इंजीनियरी प्रभाग द्वारा रॉकेट नोदक संयंत्र (आरपीपी) को कमीशन किया गया। संविरचित रॉकेटों की संख्या में वृद्धि के साथ, एसएसटीसी में विकसित रॉकेटों और हार्डवेयर का दायित्व लेने के लिए वर्ष 1971 में रॉकेट संविरचन सुविधा (आरएफएफ) नामक एक और सुविधा को कमीशन किया गया। देश में अंतरिक्ष अनुसंधान के समन्वयन और संचालन के लिए वर्ष 1969 में परमाणु ऊर्जा विभाग के अधीन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का गठन किया गया। वर्ष 1970 में, टर्ल्स से हर सप्ताह अपने मौसमविज्ञानीय परिज्ञापी रॉकेट, एम -100 का प्रमोचन करने के लिए यूएसएसआर के हाइड्रोमेटोरोलॉजिकल सर्विसेस ने इसरो के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह कार्यक्रम वर्ष 1993 तक निर्बाध रूप से जारी रहा। इनके अलावा, यथासमय हमने टर्ल्स से रोहिणी नामक हमारे अपने परिज्ञापी रॉकेटों की एक श्रृंखला का प्रमोचन किया। रॉकेट प्रमोचन की बढ़ती आवृत्ति का समर्थन करने में असमर्थ टर्ल्स था। तुंबा में जगह की अपर्याप्तता और सुरक्षा संबंधी विचारों से लगाए गए जगह के प्रतिबंधों के कारण, आंध्रप्रदेश में पुलिकट के उत्तर में स्थित श्रीहरिकोटा द्वीप पर भारत के पूर्वी तट पर एक दूसरा रॉकेट प्रमोचन स्टेशन स्थापित किया गया था। शार (या श्रीहरिकोटा रेंज) नाम का यह स्टेशन अब भारत का अंतरिक्ष पत्तन है। जुलाई 1972 में, टर्ल्स, एसएसटीसी, आरपीपी, आरएफएफ, नोदक ईंधन कॉम्प्लेक्स (पीएफसी) और भारतीय वैज्ञानिक उपग्रह परियोजना (आइएसएसपी), बैंगलोर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) की छत्रछाया में आए जिसके निदेशक के रूप में प्रोफेसर ब्रह्मप्रकाश रहे। (बंगलौर के आइएसएसपी को नवंबर 1976 में इसरो उपग्रह केंद्र (आइसैक) के रूप में पुनर्गठित किया गया था)। वर्ष 1972 में, भारत सरकार ने अंतरिक्ष विभाग (अं.वि.) और अंतरिक्ष आयोग का गठन किया और इसरो को अं.वि. के अधीन लाया।
हमारा विज़न
अंतरिक्ष विज्ञान अनुसंधान और ग्रहीय अन्वेषण का पीछा करते हुए, राष्ट्रीय विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग करना हमारा विज़न है।
हमारा मिशन
• अंतरिक्ष तक पहुंच प्रदान करने के लिए प्रमोचन यानों और संबंधित प्रौद्योगिकियों की अभिकल्पना एवं विकास।
• अंतरिक्ष विज्ञान तथा ग्रहीय अन्वेषण में अनुसंधान एवं विकास।
हमारे उद्देश्य
• • ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पीएसएलवी) की प्रचालनात्मक उड़ानें।
• भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रमोचन यान (जीएसएलवी) की प्रचालनात्मक उड़ान
• भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रमोचन यान मार्क III (जीएसएलवी मार्क III उर्फ एलवीएम3) की प्रचालनात्मक उड़ान
• मानवोचित प्रमोचन यान का विकास
• पुनरुपयोगी प्रमोचन यानों का विकास
• लघु उपग्रह प्रमोचन यान का विकास
•वायु श्वसन नोदन, परीक्षण यान आदि जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियां एवं नवीनतर पहलें
• उद्योग को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और बौद्धिक संपत्ति प्रबंधन के साथ हाथ मिलाना
• प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण एवं शिक्षा
• सामाजिक हितलाभों के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना
• अवसंरचना एवं सुविधा विकास